पलायन की सोच में परिवर्तन
उत्तराखंड के पहाड़ों की
प्राकृतिक सुंदरता लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। परन्तु, इन पहाड़ों के लाखों निवासी, इतनी सुन्दर जगह से पलायन करने को मजबूर हो गए
हैं। इसका एक ही कारण है कि, यहाँ आजीविका के स्त्रोतों की कमी है।
पहाड़ी क्षेत्रों से तेजी से
होने वाले पलायन के चलते गांव नाहेरी के नैराड तोक, विकास खंड
भिकियासैण, जिला अल्मोड़ा के निवासी एक किसान गोपाल सिंह
रौतेला भी अब यहाँ से पलायन कर अपने परिवार के लिए आजीविका अर्जन करने के लिए सोच
रहा था, क्योंकि, उसके पास उपलब्ध पुस्तैनी 40 नाली जमीन पिछले कुछ वर्षों से खेती नहीं करने के कारण बंजर हो गयी थी। अब
उसके पास इतनी धनराशि भी नहीं थी कि वो अपनी बंजर होती जा रही जमीन को ठीक करके
फसल उत्पादन कर सके और अपने परिवार का पेट पाल सके।
उत्तराखंड के ग्रामीण पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन
रोकने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि यहाँ आजीविका के साधनों को विकसित किया
जाये। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आजीविका विकास के लिए उत्तराखंड सरकार ने, अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष की सहायता से, वर्ष 2015 में ”एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना“ का शुभारभ, 11 जिलों के 44 विकास खंडो में
किया। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया व् भिकियासैण विकास खंडों में इस ”एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना“ के क्रियान्वयन के लिए इंडियन फार्म फॉरेस्ट्री
डेवलपमेंट कोआपरेटिव लिमिटेड को तकनिकी संस्था के रूप में जिम्मेदारी दी।
परियोजना क्रियान्वयन की
प्रक्रिया में गोपाल सिंह के गांव में भी 7 सदस्यों से एक
उद्पादक समूह गठित किया गया जिसका नाम रामगंगा उत्पादक समूह रखा गया। गोपाल सिंह
भी इस समूह के सदस्य बने और समूह की गतिविधियों में भाग लेने लगे और नियमित रूप से
समूह की बैठकों में भाग लेने लगे। परियोजना द्वारा समूह के साथ बैठकर उनके लिए ”खाद्य सुरक्षा क्रियान्वयन योजना“ तैयार की गयी। उत्पादक समूहों की तैयार योजनाओं
के आधार पर आई.एफ.एफ.डी.सी. द्वारा कृषि विभाग से संपर्क कर गोपाल सिंह की 40 नाली जमीन के लिए ड्रिप सिंचाई सिस्टम लगाने हेतु सहायता स्वीकृत कराई गयी।
आई.एफ.एफ.डी.सी. द्वारा क्षेत्र में गठित की गयी स्वायत्त सहकारी समितियों में
कृषि उपकरण व् मशीन उपलब्ध कराये गए जो किसानों को किराये पर खेती करने हेतु
उपलब्ध कराये जाने लगे। समूहों के माध्यम से किसानों को खेती की नयी तकनीकियों के
बारे में प्रक्षिशणों और भ्रमणों के द्वारा नवीनतम जानकारी व ज्ञान प्रदान कराया
गया।
उत्पादक समूहों के किसानों
को नयी तकनिकी से सब्जियों की खेती करने हेतु प्रेरित किया गया। किसान गोपाल सिंह
को भी सहकारी समिति से किराये पर ट्रेक्टर उपलब्ध कराया, जिससे उसने अपनी
जमीन की अच्छी से जुताई करके खेत को फसल बोने योग्य बना लिया। परियोजना एवं संस्था
के मार्गदर्शन में गोपाल सिंह ने अपनी 40 नाली जमीन में भिंडी, टमाटर, बैंगन, आलू, लौकी जैसी सब्जिया उगानी प्रारम्भ कर दीं।
सब्जियों को उसने भिकियासैण के बाजार में बेचना शुरू कर दिया, इससे गोपाल सिंह को अच्छी आमदनी होने लगी। परियोजना द्वारा फसलों को जंगली
जानवरो से बचाने के लिए तार वाली बाड़ के लिए भी सहायता प्रदान की गयी, जिसका लाभ गोपाल सिंह ने भी लिया और अपने खेतों की तारबंदी कर ली। गोपाल सिंह
को सब्जियों का अधिक उत्पादन मिलने लगा जिससे उसको अधिक आय होने लगी और उसके
परिवार की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होने लगी। परियोजना द्वारा दुर्गम स्थित गाँवों
के किसानों के लिए जगह-जगह पर ”लघु संग्रहण केंद्र“ भी बना दिए, जिससे अन्य किसानों के साथ-साथ गोपाल सिंह भी अपनी सब्जियाँ वहाँ रखने लगे, जिससे स्थानीय बिक्री के बाद शेष बची सब्जियों को बाहर बेचने की सुविधा होने
लगी। अब गोपाल सिंह ने पलायन करने का विचार त्याग दिया और ताउम्र अपने ही गांव में
रह कर अपनी आजीविका चलाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। गोपाल सिंह आज कई किसानों और नई
पीढ़ी के उन युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गए हैं जो पहाड़ो से अपनी आजीविका के
लिए पलायन करने जा रहे थे।